Sunday, June 13, 2010

हिन्दी और हम......

नमस्कार मित्रो,
मैं रवि केशरी अपने विचारों के साथ एक बार फिर उपस्तिथ हूँ|
आपलोगो का प्यार और स्नेह मुझे जितना मिल रहा है आशा करता हूँ की आगे भी मिलता रहेगा| बल्कि इससे भी ज़्यादा ही मिलेगा |

आज पहली बार हिन्दी मे लिखते हुए मुझे बहुत ही आनंद की  अनुभूति हो रही है | हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है, और हम ही इससे दूर होते जा रहे हैं | प्रत्येक वर्ष हम हिन्दी दिवस मानते हैं हिन्दी को ज़्यादा से ज़्यादा उपयोग करने की बातें करतें हैं| लेकिन ये सारी बातें बस उसी दिन तक सीमित रह जाती हैं| खैर, मैं यह नही कहता की हमे  हिन्दी का प्रयोग सारे क्षेत्रो मे करे क्योंकि यह संभव नही है| आज कल के वैश्विक वातावरण मे जहाँ अँग्रेज़ी की माँग और उपयोग बहुत ही ज़्यादा है वहाँ हिन्दी का प्रयोग बहुत ही कठिन है लेकिन जितना संभव हो सके उतना तो कर ही सकते हैं|

खैर, आप कहेंगे की आज इसको क्या हुआ है हिन्दी पर मेहरबान हो रहा है| अब जबकि मैं हिन्दी मे लिख ही रहा हूँ तो आप्स यह अनुरोध करूँगा की आइए हम सब मिलकर हिन्दी को बढ़ावा देने का संकल्प करें.| क्योंकि जबतक हम युवा पीढ़ी इसको बढ़ावा नही देंगे तो यह भाषा केवल पढ़ाई के विषयों मे ही मिलेगा | अभी कुछ दिनो पहले की बात है, मैं मेट्रो ट्रेन मे जा रहा था| उस ट्रेन मे एक बच्चा अपनी मा के साथ सफ़र कर रहा था| तभी मेट्रो मे उद्घोषणा हुई तो उस बच्चे को हिन्दी की उद्घोषणा का मतलब उसकी मा ने अँग्रेज़ी रूपांतरण कर क समझाया| तब मुझे लगा की अपनो ने ही हिन्दी को पराया बना दिया|

इसलिए मई सोचता हूँ की कुछ होना ही चाहिए इस अमूल्या धरोहर को बचाने क लिए| आइए हम संकल्प ले की हम यथासंभव हिन्दी को बढ़ने का प्रयास करेंगे| तभी हम राष्ट्र द्वारा किए गये उपकारो का थोड़ा बदला चुका सकेंगे|

विशेष अगली बार....

शुभ विदा |

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