Sunday, August 29, 2010

गुज़री है रात कैसे सबसे कहेंगी आँखें, शरमा के खुद से खुद ही यारों झुकेंगी आँखें

Hello Friends... 

Sorry for post after a long time. I was a busy a little. Today one of my friend, who is a poet told me to share this poem with you through my blog. His name is Satish.

Here the awesome poem from him...


गुज़री है रात कैसे सबसे कहेंगी आँखें
शरमा के खुद  से खुद ही यारों झुकेंगी आँखें

ओ यार मेरे मुझको तस्वीर अपनी दे जा
तन्हाइयों में उससे बातें करेंगी आँखें

उसने कहा था मुझसे परदेस जाने वाले
जब तक न आएगा तू रस्ता तकेंगी आँखें

मन में रहेगा मेरे बस प्यार का उजाला
हर राह ज़िन्दगी की रोशन करेंगी आँखें

होठों की मेरे कलियाँ कब तक नहीं खिलेंगी
अश्के लहू से आखिर कब तक रचेंगी आँखें

सुख दुःख हैं इसके पहलू ये  ज़िन्दगी है सिक्का
हालात  ज़िन्दगी के खुद ही करेंगी आँखें

तू भी ‘रक़ीब’ सो जा होने को है सवेरा
वरना हथेली दिन भर मलती रहेंगी आँखें

By the way, I am fine and hope that you all are also enjoy your lives.

Time to say bye this time, but I'll be back soon..


Till then Bye and Take Care...



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