Sunday, April 28, 2013

हमारा देश और सांप्रदायिक दंगे.... जिम्मेदार कौन ???

2014 में लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं और देश के सामने एक ही सवाल है की देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा? और ये बात भी किसी से छुपी नहीं है की इस समय देश के दोनों बड़ी पार्टियों के तरफ से दो लोग सामने आ रहे हैं, नरेन्द्र मोदी और राहुल गाँधी.. 

एक ओर जहाँ राहुल गाँधी के पास अनुभव की कमी है तो दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी जिनके पास अनुभव तो है लेकिन उनके शाषण के दौरान गुजरात में दंगे हुए हालाँकि इतने अलग अलग जांच आयोगों के बावजूद उनके खिलाफ एक भी सबूत नहीं मिला है 

ये हमारे देश का दुर्भाग्य है की धर्मनिरपेक्ष देश होने के बावजूद भी इस धरती ने आजादी के बाद अब तक अपने ही हजारों बच्चों का खून देखा है, यह देश जो अपनी गंगा जमुनी सभ्यता के लिए पुरे विश्व में जाना जाता है उसके ही सीने पे सांप्रदायिक दंगों के इतने घाव हैं ।

जितने भी दंगे हुए हैं इस देश में उसके लिए हर एक राजनितिक दल ने दुसरे दल को ही जिम्मेवार माना है,  इस तरह के दंगे सभ्य समाज के लिए बड़े ही शर्मशार करने वाली बात है और ऐसा नहीं होना चाहिए..। लेकिन कुछ लोग दंगो का राजनितिक फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं जो की इस देश के लिए उन दंगो से भी खतरनाक है.. 

हमारे देश में दंगो का इतिहास बड़ा ही पुराना है और दुर्भाग्य से आजाद भारत में दंगो की नींव् राष्ट्रपिता ने जाने अनजाने में रखी थी भारत का विभाजन धर्म के आधार पर करके । सवाल यह है की जब हम नरेन्द्र मोदी को 2002 दंगों के लिए जिम्मेवार मानते हैं जिसके लिए सर्वोच्च न्यायलय ने भी मोदी पर लगे आरोपों को नहीं माना तो क्या उस्सी कसौटी पर दुसरो को नहीं परखना चाहिए ?? देखिये देश में हुए दंगे और उस समय वहां के सत्ताधारी दल ..

साल
स्थान
सत्ताधारी दल
नुकसान
1947
बंगाल
कांग्रेस
5000 लोग
1964
झारखण्ड (तत्कालीन बिहार)
कांग्रेस
2000 लोग
1967
रांची (झारखण्ड)
कांग्रेस
200 लोग
1969
अहमदाबाद (गुजरात)
कांग्रेस
512 लोग
1970
भिवंडी (महाराष्ट्र)
कांग्रेस
80 लोग
1979
बंगाल
कम्युनिस्ट पार्टी
125 लोग
1980
मोरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
कांग्रेस
200 लोग
1983
असम
कांग्रेस
2191 लोग
1984 
भिवंडी (महाराष्ट्र)
कांग्रेस
146 लोग
1984
दिल्ली  
कांग्रेस
2733 लोग
1985
अहमदाबाद (गुजरात)
कांग्रेस
300 लोग
1986
अहमदाबाद (गुजरात)
कांग्रेस
59 लोग
1987
मेरठ (उत्तर प्रदेश)
कांग्रेस
81 लोग
1989
भागलपुर (बिहार)
कांग्रेस
1000 लोग
2002
गुजरात
भारतीय जनता पार्टी
1044 लोग
2012
असम
कांग्रेस
77 लोग


सबसे ज्यादा दंगे कांग्रेस के शाशनकाल में होने पर भीवो सेकुलरिज्म के ठेकेदार बने हैं । अब जबकि चुनाव आने वाले हैं और कांग्रेस भ्रष्टाचार के दलदल में पूरी तरह से डूबी है, और इनकी दुबारा सरकार बनना मुश्किल है तो फिर से इन लोगों ने धर्मं की राजीनीति का कार्ड फेका है ।

कांग्रेस ने हमेशा से ही देश में फुट डालो और राज करो वाली नीति अपनाई है साठ सालों से अधिक के अपने शाषण काल में भी उन्होंने मुसलमानों के हित के लिए कोई काम नहीं किया बस अपने राजनितिक फायदों के लिए केवल उनका इस्तेमाल ही किया है, अगर कांग्रेस मुसलमानों की समस्याओं को समझती है तो आज भी देश के मुसलमानों की स्थिति क्यूँ नहीं सुधरी? आज भी उनके दिलों में असंतोष क्यूँ है? वही दूसरी और गुजरात जिसका इतिहास सांप्रदायिक दंगो से भरा है वहां 2002  के बाद ऐसी कोई घटना नहीं हुई..??

मोदी के खिलाफ पुरे देश के तथाकथित सेक्युलर विचारधारा के ठेकेदार लगे पड़े हैं, जो लोग मोदी से या भाजपा से 2002 के दंगो के लिए सवाल करते हैं वो क्या कांग्रेस या और दुसरे राजनितिक दल से भी ये सवाल करने की हिम्मत रखते हैं...??

इस देश के नेताओं को सोचना होगा हमें मंदिर मस्जिद नहीं चाहिए, हमें अच्छे स्कूल चाहिए, अच्छे अस्पताल चाहिए, रोजगार चाहिए, और सबसे बढ़कर देश के हर वर्ग के लिए सुरक्षा चाहिए.. हमें एक नयी सुबह चाहिए ।

4 comments:

  1. आपने बड़े ही तर्कपूर्ण सवाल किये है। काश यही सवाल कोई सदन में भी पूछने की क्षमता रख पाता।

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    1. ये सवाल केवल नेताओं से ही नहीं हैं ये उन सेकुलरिज्म के ठेकेदारों से भी हैं जो झूठे सेकुलरिज्म के नाम पर देश में साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दे रहे हैं.. एक संप्रदाय के लोगों को दिन रात केवल यही बताया जा रहा है की देखो तुम्हारे साथ उसने ऐसा किया, उसने वैसा किया. क्या ये लोग देश के हालात के जिम्मेवार नहीं हैं

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  2. बहुत खूब

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    1. धन्यवाद् आपका की आपको ये लेख अच्छा लगा मनोज जी

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